क्या संविधान की प्रस्तावना में संशोधन की जरूरत है ?

शिवशंकर गोस्वामी
क्या संविधान की प्रस्तावना में संशोधन की जरूरत है ?
संविधान विशेषज्ञों में इस समय एक नयी बहस छिडी है कि संविधान की प्रस्तावना में आपातकाल के दौरान जोडा गया शब्द धर्मनिरपेक्ष एक समाजवाद रहना चाहिए या निकाल देना चाहिए। यह बहस तब शुरू हुई जब आर एस एस के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने एक बयान दिया कि संविधान की प्रस्तावना इन दोनों शब्दों को निकाल देना चाहिए क्योंकि इन्हें आपातकाल के दौरान जोडा गया था। उनका कहना है कि इन दोनों शब्दों को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने मनमने तरीके से जोडा था। होसबोले का तर्क है कि जब पूरा आपातकाल ही असंवैधानिक था तो उस काल में संविधान जैसे महत्वपूर्ण मामले में किया गया छेड़छाड़ दुरुस्त था?अब दुरुस्त कौन करेगा ,कोई नहीं करेगा यह तो समय के गर्भ में है लेकिन इतना साफ है कि संविधान की प्रस्तावना में इस छेड़छाड़ से बाबा साहेब अम्बेडकर और संविधान सभा के उन ढाई सौ से अधिक सदस्यों को धक्का जरूर लगेगा जिन्होंने लगभग ढाई साल की मेहनत के बाद तैयार किया था।
अब हम देखेंगे कि 26 जनवारी 1950 को जिस संविधान को भारत गणराज्य में लागू किया गया था उसकी मूल प्रस्तावना में क्या था। बताते चले कि मूल प्रस्तावना में कहा गया है कि हम भारत के लोग भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुता सम्पन्न समाजवादी धर्म निरपेक्ष लोकतांत्रिक और गणराज्य के रूप में अंगीकृत करते है इसके अलावा यह न्याय स्वतंत्रता और समानता और बन्धुत्व जैसे समान मूल्यों को भी उजागर करतीं हैं। यहाँ पर हम भारत के लोग इस बात को दर्शाता है कि संविधान की पूरी शक्ति भारत के लोगो में ही निहित है।
आर एस एस के उप प्रमुख हंस बोले की माने तो धर्म निरपेक्ष एवं समजवादी शब्द इसमें बाद में जोडा गया है इस लिए इसे संशोधित किया जाना चाहिए। मगर क्यों यह एक बहस का विषय है और निश्चित रूप से यह चुनाव में एक मुद्दे का रूप लेने वाला है। फायदा किसको होगा यह समय बतायेगा।
संविधान को लेकर एक और भ्रांति है कि इसे बाबासाहेब आंबेडकर ने बनाया है जब कि सच्चाई यह है कि इसे लगभग तीन 290 लोगों की एक समिति ने बनाया है। इस समिति के अध्यक्ष थे बाबू राजेन्द्र प्रसाद तथा समिति में 22 उप समितियां थी जिसमें से जो ड्राफ्ट कमेटी थी उसी के अध्यक्ष थे डाक्टर भीमराव आंबेडकर। समिति के मुख्य सदस्यों के नाम इस प्रकार है ं। अध्यक्ष– डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद अन्य सदस्यों में है पंडित जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती सरोजिनी नायडू, हरेकृष्ण मेहताब ,सरदार बल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद ,पंडित गोविंद बल्लभ पंत, आचार्य जे बी कृपालानी ,श्यामा प्रसाद मुखर्जी , केएम मुंशी आदि। संविधान सभा के इन सदस्यों को भारत के राज्यों की प्रतिनिधि सभाओं द्वारा चुना गया था। इसमे से जो प्रारूप समिति थी उसमें सात सदस्य थे जिसके अध्यक्ष थे डाक्टर अंबेडकर। अन्य छह सदस्य थे अनादि कृष्णा स्वामी अय्यर, एन गोपाल स्वामी ,के एम मुंशी ,मोहम्मद सादुल्ला ,बीएल मित्तल और डीपी खेतान। ड्राफ्ट कमेटी का अध्यक्ष होने के नाते जाहिर है डाक्टर अम्बेडकर का सर्वाधिक महत्व है। शायद इसी लिए आज उन्हें संविधान निर्माता के रूप में जाना जाता है और इसीलिये उनका सर्वाधिक सम्मान है और इसीलिए भारत सरकार ने उन्हें भारतरत्न से सम्मानित कर चुकी है ।
आगे बताते चले की संविधान का पूरा मसौदा जब तैयार हो चुका था तो इस पर सबसे पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने हस्ताक्षर किए थे दूसरा हस्ताक्षर करने वाली थी सरोजिनी नायडू इस संविधान को संसद के केंद्रीय पक्ष में अंगीकार किया गया था और 26 जनवरी 1950 को इसे लागू करके भारत को पूर्ण गणराज्य घोषित किया गया था। आज इस संविधान के अनुसार हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश के रूप में चल रहा है जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहां जा सकता है। संविधान को लेकर आज जो लोग इसको बचाने का सॉन्ग रचते हैं उन्हें यह नहीं मालूम कि इसको तैयार करने में कितने लोगों का योगदान और मेहनत लगी है संविधान में अब तक 100 से अधिक संशोधन हो चुके हैं सबसे बड़ा और संशोधन 1975 में आपातकाल के दौरान किया गया था संविधान संशोधन के 42वें संविधान संशोधन के नाम से जाना जाता है इस संविधान संशोधन को प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने किया था। इस संशोधन में कई विवाद स पर बात थी जैसे लोकसभा का कार्यकाल 5 साल से बढ़कर 6 साल कर दिया गया था तमाम नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन कर दिया गया था जबकि बहुचर्चित केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट का बहुमत से फैसला आ चुका है कि संविधान की मूल प्रस्तावना में कोई छेड़छाड़ नहीं किया जा सकता है बावजूद इसके आपातकाल के दौरान संविधान में छेड़छाड़ किया गया आज कुछ राजनीतिक नेता इस बात का नारा देते हैं संविधान को बचाने का काम करेंगे जबकी उन्हीं के पूर्वजों द्वारा इसे नष्ट करने का काम किया गया था न्यायपालिका को पूरी तरह से पंगु बना दिया गया था आपातकाल के बाद जब जनता पार्टी की सरकार आई तब उसने 42 वें संविधान संशोधन को पलट दिया और लोकसभा के कार्यकाल को पुनः 5 साल के लिए कर दिया नागरिकों के तमाम अधिकारों को बहाल किया जिसमें प्रमुख बोलने की आजादी धारा प्रमुख है आज अगर हिंदुस्तान के लोग अपनी बातों को खुलकर कह सकते हैं तो इस अधिकार को हमारे संविधान में ही दिया है 2014 में केंद्र में जब एनडीए की सरकार आई इसने कई महत्वपूर्ण संशोधन किये जिसमें से धारा 370 और तीन तलाक की व्यवस्थाओं को हटाने का संशोधन प्रमुख था इसके अलावा कुछ अन्य महत्वपूर्ण संशोधन भी किए गए जिसमें से कुछ सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। इसमें धारा 370 को समाप्त करने वक्फ कानून को निरस्त करने का संशोधन सबसे प्रमुख और चर्चा में है हमारा संविधान बहुत लचीला कहा जाता है इसीलिए इसमें इतनी संशोधन हुए हैं जबकि अमेरिका का कानून लगभग 200 साल पुराना है और उसमें आज तक 10 से अधिक संशोधन नहीं हुआ हमारा संविधान अमेरिका और ब्रिटेन के अलिखित संविधानों की नकल है। अभी आगे इसमें और संशोधन होगा और कितना संशोधन होगा यह समय की आवश्यकता पर निर्भर करता है किंतु दत्तात्रेय होसबोले धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द को प्रस्तावना से निकलने की बात कही है तो उसके पक्ष में एक मजबूत तर्क भी होना चाहिए था इस आधार पर कि इससे आपातकाल में प्रस्तावना के साथ जोड़ा गया बहुत पर्याप्त आधार नहीं है अच्छा होगा कि इस पर संसद के भीतर एक लंबी बहस हो जाए और उसमें यह बात तय हो जाए कि आज संविधान में इन दो शब्दों को हटाने बरकरार रखने का कितना नफा नुकसान है और इससे किसी राजनीतिक पार्टी को लाभ या हानि हो सकता है।