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योगी बनाम अमित शाह
“योगी बनाम अमित शाह” की चर्चा समय-समय पर राजनीतिक गलियारों में होती रही है, खासकर जब उत्तर प्रदेश (UP) की राजनीति और केंद्र की रणनीति एक-दूसरे से टकराती दिखती हैं। हालांकि आधिकारिक रूप से बीजेपी (BJP) कभी इस टकराव को स्वीकार नहीं करती, लेकिन कई राजनीतिक विश्लेषक और मीडिया रिपोर्ट्स इसको लेकर अपने-अपने दृष्टिकोण रखते हैं।
यहाँ हम इस मामले को विस्तार से समझते हैं:
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1. योगी आदित्यनाथ – यूपी के मुख्यमंत्री, गोरखपीठाधीश्वर, हिंदुत्व के मजबूत चेहरे और जनाधार वाले नेता हैं।
2. अमित शाह – देश के गृह मंत्री और बीजेपी के चाणक्य माने जाते हैं, जिन्होंने मोदी के साथ मिलकर पार्टी को शिखर तक पहुँचाया।
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1. सीएम चेहरे को लेकर असहमति (2017 और 2022)
2017 में यूपी विधानसभा चुनाव के बाद योगी आदित्यनाथ का चयन अचानक हुआ, कहा गया कि अमित शाह की शुरुआती पसंद कोई और था।
2022 में भी योगी को दोबारा सीएम बनाए जाने को लेकर अमित शाह के साथ कुछ नीति मतभेद सामने आए थे, लेकिन मोदी के हस्तक्षेप से बात बनी।
2. कैबिनेट चयन में दखल
यूपी में कई बार अमित शाह और केंद्रीय नेतृत्व ने योगी सरकार के मंत्रियों की सूची में फेरबदल करने की कोशिश की।
योगी आदित्यनाथ ने अपने भरोसेमंद चेहरों को प्रमुख पद दिए, जो दिल्ली को कम पसंद आए।
3. ब्यूरोक्रेसी और नियंत्रण की लड़ाई
योगी आदित्यनाथ नौकरशाही पर सीधे नियंत्रण रखना पसंद करते हैं।
दिल्ली की टीम चाहती है कि फील्ड में उनके “टेस्टेड ऑफिसर” लगाए जाएं।
4. लोकसभा 2024 की तैयारी में अलग रणनीति
अमित शाह बूथ स्तर पर अपनी रणनीति को लागू कराना चाहते थे, जबकि योगी आदित्यनाथ अपने संगठनात्मक नेटवर्क के भरोसे थे।
बीजेपी के अंदर चर्चा थी कि यूपी में “डबल इंजन सरकार” का असली इंजन कौन है—इसको लेकर खींचतान चलती रही।
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मोदी कैबिनेट में योगी के करीबी को जगह न मिलना: यह भी एक संकेत माना गया कि शाह-योगी के बीच दरार अभी पूरी तरह भरी नहीं है।
राम मंदिर उद्घाटन: योगी की अहम भूमिका के बावजूद मंच पर उन्हें सीमित जगह दी गई, जिससे कई राजनीतिक विश्लेषकों ने दिल्ली बनाम लखनऊ एंगल निकाला।
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बीजेपी के भीतर यह सब “संतुलन की राजनीति” है। पार्टी चाहती है कि हर पावर सेंटर पर केंद्र का नियंत्रण बना रहे।
योगी आदित्यनाथ एक स्वतंत्र राजनीतिक ब्रांड बन चुके हैं—जो दिल्ली को लंबे समय में चुनौती बन सकते हैं।
लेकिन मोदी-शाह और योगी फिलहाल साझा लक्ष्य (2029 के चुनाव, हिंदुत्व एजेंडा, राष्ट्रवाद) पर काम कर रहे हैं, इसलिए दरारें खुलकर सामने नहीं आतीं।
निष्कर्ष:
“योगी बनाम अमित शाह” कोई खुला युद्ध नहीं, बल्कि राजनीतिक नियंत्रण, संगठनात्मक वर्चस्व और नेतृत्व की प्राथमिकताओं का टकराव है। फिलहाल, ये टकराव पार्टी के अंदर ही सुलझा लिया जाता है, लेकिन भविष्य में यह सत्ता संतुलन को प्रभावित कर सकता है।