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1911 में बना एक ऐतिहासिक डाक बंगला! आदि कैलाश और ॐ पर्वत यात्रा !
Day -1
लखनऊ से लोहाघाट...
सुबह 6 बजे की ठंडी हवा, हल्का सा कोहरा, और मेरा हेलमेट... लखनऊ की सड़कों को पीछे छोड़ते हुए मैं बढ़ा लखीमपुर की ओर... चारों ओर हरियाली और खुला आसमान... मानो सड़कें खुद बुला रही है लखीमपुर पार करने के बाद जब पीलीभीत के रास्ते पर पहुंचा... तो खेतों की वो सुगंध, और रास्ते में दिखते बैलगाड़ी वाले दृश्य... गाँव की सादगी और प्रकृति की सुंदरता दिल को छू गई। और फिर पहुँचा मैं खटीमा... जहाँ मेरी मुलाकात हुई मेरे दिल्ली से आए साथियों से – राम भाई, अर्पित भाई, ध्रुव भाई और उनकी वाइफ से। चारों तरफ मुस्कान, गले मिलना, और बाइकिंग ब्रदरहुड का असली जश्न ध्रुव भाई और उनकी पत्नी अपनी ब्रेज़्ज़ा कार से आये थे बाकि दोनों मित्र हमेशा की तरह बुलेट से आये थे अब हम सबने मिलकर बाइकें दौड़ाईं टनकपुर की ओर... टनकपुर की पथरीली सड़कें, और उसके बाद शुरू होती है चंपावत की पहाड़ी चढ़ाई... हर मोड़ पर धुंध, हर मोड़ पर हरियाली, और हर मोड़ पर एक नई उम्मीद। हमारे बड़े भाई तपन जी और अजित प्रताप सिंह भैया ने मेरे ठहरने की व्यवस्था डाक बँगले मे कर दी और चम्पावत के मित्र को आव भगत के लिए भी बोल दिया था, चम्पावत मे सेवा लेने के बाद हम सभी शाम होते-होते हम पहुँचे लोहाघाट... जहाँ ठहरने की जगह थी – 1911 में बना एक ऐतिहासिक डाक बंगला! पुरानी लकड़ी की खिड़कियाँ, लोहे की सीढ़ियाँ और British Era की खुशबू... मानो वक्त कुछ पल के लिए वहीं थम गया हो। अगले दिन हमने एक्सप्लोर किया लोहाघाट का हर कोना – Advaita Ashram, Abbot Mount, Mayawati Ashram, Pancheshwar Dham... हर जगह शांति, हर जगह प्रकृति का जादू, और हर मोड़ पर एक नई कहानी। तो दोस्तों, यह थी हमारी लखनऊ से लोहाघाट तक की बाइकर जर्नी। यात्रा सिर्फ दूरी नहीं होती, ये रिश्ते बनाती है, यादें बुनती है और दिल में बस जाती है। लखनऊ से लोहाघाट की दुरी 382 km 8 घंटे